वो बचपन ....
सपना बन हर रात क्योँ यादों में छा जाता है
आंसू बन बार - बार , क्यों आँखों में आ जाता है
आंसू बन बार - बार , क्यों आँखों में आ जाता है
जब देखती हूँ इस भोले मन को,
जो मुझको "माँ" बुलाता है..
"माँ "सुन कर मेरा मन भी ..
उन बीते वर्षो में खो जाता है
वो माँ जो अपनी गोदी में
मुझको रोज सुलाती थी
वो माँ जो मेरी किलकारी में
अपने सारे दुख बिसऱाती थी
वो माँ जो मेरे प्रश्नों में
उलझ के मुझे समझाती थी
वो माँ जो मेरी खुशियों में
अपना सारा जीवन जी जाती थी
उस माँ ने मुझको लेकर नित
कितने सपने बुने थे
मेरी वरमाला के फूल उसने
अपने हाथों से ही चुने थे
विदा करने को माँ ने मुझे
जो जोड़े- कंगन पहनाये थे
ने जाने कितने बरस उसके लिए
उसने लाल चूड़ी में ही बिताये थे
वो गर्म रोटी माँ के हाथ की,
तब याद मुझे बहुत आती है,
जब तेज रफ़्तार की ये जिन्दगी
फास्ट फ़ूड में ही निकल जाती है
गर्मी की दुपहर फ्रिज में रखा वो
निम्बू -पानी याद बहुत आता है,
जब मई जून के तपते महीने
यूँ सूखे ही निकल जाते है
मेरी हंसी, मेरी ख़ुशी में,
वो आँखे अब भी खिल जाती है
हर दिन हर पल अब भी मुझे
मेरी "माँ" याद बहुत आती है......
वो गर्म रोटी माँ के हाथ की,
तब याद मुझे बहुत आती है,
जब तेज रफ़्तार की ये जिन्दगी
फास्ट फ़ूड में ही निकल जाती है
गर्मी की दुपहर फ्रिज में रखा वो
निम्बू -पानी याद बहुत आता है,
जब मई जून के तपते महीने
यूँ सूखे ही निकल जाते है
मेरी हंसी, मेरी ख़ुशी में,
वो आँखे अब भी खिल जाती है
हर दिन हर पल अब भी मुझे
मेरी "माँ" याद बहुत आती है......
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